सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत से शाहीन बाग में CAA के खिलाफ धरने को लेकर उसके पुराने फैसले पर विचार करने की मांग की गई थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, ‘विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता।’ सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ करते हुए कहा है कि शहीद बाग में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विरोध किया जा सकता है लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और किरना मुरारी की पीठ ने कहा, ‘हमने सिविल अपील में पुनर्विचार याचिका और रिकॉर्ड पर विचार किया है। हमने उसमें कोई गलती नहीं पाई है।
पीठ, जिसने हाल ही में आदेश पारित किया है, ने कहा कि इसने पहले के न्यायिक घोषणाओं पर विचार किया है और अपनी राय दर्ज की है कि संवैधानिक योजना विरोध प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार देती है, लेकिन कुछ कर्तव्यों की बाध्यता के साथ।
पीठ ने शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य द्वारा 7 अक्टूबर के कोर्ट के अंतिम फैसले की समीक्षा करने की याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों के सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है।’ शीर्ष अदालत, जिसने न्यायाधीशों के कक्ष में मामले पर विचार किया, ने मामले में खुली अदालत की सुनवाई की मांग को भी खारिज कर दिया।
शीर्ष अदालत का फैसला वकील अमित साहनी द्वारा शहीन बाग क्षेत्र में एक सड़क की नाकाबंदी के खिलाफ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए आया था। 2019 में बने इस कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है।
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विरोध करने का अधिकार कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता’: शाहीन बाग धरने पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत से शाहीन बाग में CAA के खिलाफ धरने को लेकर उसके पुराने फैसले पर विचार करने की मांग की गई थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, ‘विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता।’ सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ करते हुए कहा है कि शहीद बाग में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विरोध किया जा सकता है लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और किरना मुरारी की पीठ ने कहा, ‘हमने सिविल अपील में पुनर्विचार याचिका और रिकॉर्ड पर विचार किया है। हमने उसमें कोई गलती नहीं पाई है।
पीठ, जिसने हाल ही में आदेश पारित किया है, ने कहा कि इसने पहले के न्यायिक घोषणाओं पर विचार किया है और अपनी राय दर्ज की है कि संवैधानिक योजना विरोध प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार देती है, लेकिन कुछ कर्तव्यों की बाध्यता के साथ।
पीठ ने शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य द्वारा 7 अक्टूबर के कोर्ट के अंतिम फैसले की समीक्षा करने की याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों के सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है।’ शीर्ष अदालत, जिसने न्यायाधीशों के कक्ष में मामले पर विचार किया, ने मामले में खुली अदालत की सुनवाई की मांग को भी खारिज कर दिया।
शीर्ष अदालत का फैसला वकील अमित साहनी द्वारा शहीन बाग क्षेत्र में एक सड़क की नाकाबंदी के खिलाफ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए आया था। 2019 में बने इस कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है।
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