राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बेगुनाह विष्णु तिवारी के 19 वर्ष से अधिक समय जेल में गुजारने को बेहद गंभीरता से लिया है। एनएचआरसी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस जारी कर दुष्कर्म के आरोप में दोषी ठहराए जाने के 19 बरस बाद विष्णु के बरी होने के मामले में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
एनएचआरसी ने खासकर जिम्मेदार लोक सेवकों के विरुद्ध की गई कार्रवाई तथा पीड़ित विष्णु को राहत पहुंचाने व उनके पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों की रिपोर्ट तलब की है। एनएचआरसी ने इसके लिए छह सप्ताह का समय दिया है। एनएचआरसी ने सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (सजा समीक्षा बोर्ड) की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया है और कहा है कि बोर्ड निष्प्रभावी होकर रह गया है। कई ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जिनमें 75 वर्ष से अधिक आयु के बंदियों की जेल में ही मौत हो जाती है।
एनएचआरसी ने मीडिया रिपोर्ट के जरिए इस गंभीर मामले का संज्ञान लिया है। कहा गया है कि 23 वर्षीय व्यक्ति को दुष्कर्म के मामले में ट्रायल कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। उसे करीब 19 वर्ष बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निर्दोष करार दिया। इस अवधि के दौरान, उसके परिवार के कई सदस्यों की मृत्यु हो गई थी। जेल में उसका आचरण हमेशा अच्छा पाया गया, लेकिन पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं मिला। भाई के अंतिम संस्कार में भी शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई।
पीड़ित विष्णु तिवारी पर वर्ष 1999 में अनुसूचित जाति की एक महिला के साथ दुष्कर्म का संगीन आरोप लगाया गया था। ललितपुर जिले की निचली अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान विष्णु को दोषी ठहराया था। वर्ष 2005 में विष्णु ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और करीब 14 वर्ष बाद इंसाफ मिला।