कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इसके बीच विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय से एक शुभ समाचार मिल रहा है। खबरों के मुताबिक, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) ने कोरोना वायरस कोवैक्सीन और जायकोव-डी के इंसानो पर ट्रायल की अनुमति दे दी है। इस खबर के बाद लोगों में उम्मीद की किरण जग गई है कि जल्द ही कोरोना की वैक्सीन मार्केट में आ सकती है। साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री में छपे एक आर्टिकल में दावा किया गया है कि इस वैक्सीन के जरिया कोरोना वायरस को जड़ से खत्म किया जा सकता है। जाहिर है कि कोरोना की वैक्सीन को मार्केट में तब ही लाया जाएगा जब वो ह्यूमन ट्रायल में सफल होगी। तो चलिए जानते हैं कि आखिर ह्यूमन ट्रायल कितने स्टेज की होती है।
इंसानो पर ट्रायल के तीन स्टेज होते हैं:
सबसे पहले आपको यह बता दें कि ट्रायल का परिणाम सकारात्मक होने पर वैक्सीन को क्लीनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाता है। इसके अगले चरण में वैक्सीन को इंसानो पर अजमाया जाता है। इन सभी प्रक्रिया में 5 से 7 साल लग जाते हैं। ट्रायल कि प्रक्रिया में तेजी होने पर भी कम से कम एक से डेढ़ साल का समगय लग जाता है।
1. पहली स्टेज में निर्धारित समूह के गिने चुने लोगों पर वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है। वैक्सीन के जरिए इंसान के शरीर में एंटीबॉडी तैयार की जाती है। इस प्रक्रिया में कम से कम 90 दिन का समय लग जाता है।
2. दूसरी स्टेज में कुछ अधिक लोगों पर यह वैक्सीन इस्तेमाल की जाती है। इस प्रोसेस में करीब 180 से 240 दिन का समय लग जाता है। दूसरी स्टेज में यह भी देखा जाता है कि इस वैक्सीन का बीमारी पर कितना प्रभाव हो रहा है। इस स्टेज में जरुरी सावधानियां भी बरती जाती हैं। हर समय उसकी प्रतिक्रिया पर नजर रखी जाती है कि कहीं कोई विपरीत प्रतिक्रिया तो नहीं हो रही है। जबकि कोरोना वायरस के शोध में समय को कम किया गया है।
3. तीसरे और अंतिम स्टेज में वैक्सीन को एक साथ हजारों लोगों पर ट्राय किया जाता है। इस समय यह भी परिक्षण किया जाता है कि इम्युनिटी सिस्टम अधिक और कम होने पर यह वैक्सीन किस तरह काम करता है। इस प्रोसेस में करीब 200 से 240 दिन का समय लग जाता है। तीसरे चरण जब वैक्सीन का परिक्षण सफल हो जाता है तो इसे रेगुलेटरी रिव्यू के लिए भेजा जाता है। इसके बाद ही वैक्सीन को मैन्युफैक्चरिंग के लिए जाता है।