देवदास से दरबान तक… जब साहित्यिक रचनाओं पर घूमा हिंदी सिनेमा का कैमरा, कुछ फ़िल्में हैं क्लासिक

 

साहित्य और सिनेमा का रिश्ता काफ़ी पुराना है। कई महान रचनाकारों की कहानियों और उपन्यासों पर हिंदी फ़िल्मकारों ने कैमरा घुमाया है। अब इस परम्परा का पालन ओटीटी कंटेंट निर्माता भी करते नज़र आ रहे हैं। ज़ी5 पर 4 दिसम्बर को रिलीज़ हो रही फ़िल्म दरबान रबींद्रनाथ टैगोर की कहानी खोकाबाबूर प्रत्यबर्तन पर आधारित है। हिंदी में इसका अनुवाद छोटे साहब की वापसी होगा। बिपिन नादकर्णी निर्देशित दरबान में शारिब हाशमी, शरद केल्कर और रसिका दुग्गल मुख्य भूमिकाएं निभा रहे हैं।

2015 में एपिक चैनल पर स्टोरीज़ ऑफ़ रबींद्रनाथ टैगोर नाम से एक धारावाहिक प्रसारित किया गया था, जिसमें यह कहानी भी शामिल थी। इस धारावाहिक का निर्देशन अनुराग बसु ने किया था। इसी रचना पर 1960 में खोकाबाबूर प्रत्यबर्तन नाम से बंगाली फ़िल्म भी आयी थी, जिसमें बंगाली सिनेमा के लीजेंड्री कलाकार उत्तम कुमार लीड रोल में थे। इसका निर्देशन अग्रदूत ने किया था। हिंदी सिनेमा में भी साहित्यिक रचनाओं को पर्दे पर उकेरने की परम्परा काफ़ी पुरानी है। ऐसी ही कल्ट फ़िल्मों की बात-

देवदास- शरद चंद्र चट्टोपाध्याय की इस अमर कृति पर कई फ़िल्में बनी हैं। सबसे पहले 1935 में बंगाली फ़िल्मकार पी बरुआ ने देवदास को पर्दे पर उतारा था। इसके बीस साल बाद 1955 में देवदास पर बिमल रॉय ने फ़िल्म बनायी, जिसमें हिंदी सिनेमा के थेस्पियन दिलीप कुमार, सुचित्रा सेन और वैजयंतीमाला ने मुख्य भूमिकाएं निभायीं। यह फ़िल्म भारतीय सिनेमा की क्लासिक फ़िल्म मानी जाती है। देवदास पर सबसे यादगार फ़िल्म संजय लीला भंसाली ने बनायी। 2002 में आयी देवदास में शाह रुख़ ख़ान, ऐश्वर्या राय बच्चन और माधुरी दीक्षित ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं।

तमस- भीष्म साहनी के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कालजयी उपन्यास तमस पर इसी नाम से गोविंद निहलानी ने फिल्म बनाई थी, जो 1988 में रिलीज़ हुई। इस पर टीवी सीरियल भी बनाया गया। इसमें एके हंगल और ओम पुरी लीड रोल में हैं। इसकी कथाभूमि में बंटवारे का दर्द था।

गोदान- मुंशी प्रेमचंद के बेहद लोकप्रिय उपन्यास गोदान पर सबसे पहले 1963 में फिल्म बनी थी। इसमें राजकुमार और महमूद मुख्य भूमिकाओं में थे। इस कहानी को 2004 में 26 एपिसोड की टीवी सीरीज ‘तहरीर मुंशी प्रेमचंद’ में भी शामिल किया गया था।

शतरंज के खिलाड़ी- मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी पर ‘द चेस प्लेयर्स’ नाम से सत्यजीत रे ने फिल्म बनाई थी। इसकी कहानी 1957 के ब्रिटिश भारत की पृष्ठभूमि पर है। फिल्म में मुख्य भूमिका में संजीव कुमार और शबाना आजमी हैं।

गबन– मुंशी प्रेमचंद के कालजयी उपन्यास ‘गबन’ पर 1966 में ऋषिकेश मुखर्जी ने इसी नाम से फिल्म बनाई थी। इसमें सुनील दत्त और साधना लीड रोल में हैं। इस फिल्म के गीत लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने गाए थे।

तीसरी कसम- राज कपूर और वहीदा रहमान की ये फिल्म फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित है। इसे शैलेंद्र ने प्रोड्यूस किया था और बासु भट्टाचार्य ने निर्देशित।

सूरज का सातवां घोड़ा- धर्मवीर भारती के उपन्यास सूरज का सातवां घोड़ा को पर्दे पर श्याम बेनेगल ने उतारा।उन्होंने इसी नाम से 1992 में फिल्म बनाई थी। इसमें रजित कपूर, नीना गुप्ता, पल्लवी जोशी और अमरीश पुरी मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म भी उपन्यास की तरह ही लोकप्रिय रही। 1993 में इसे बेस्ट फीचर फ़िल्म इन हिंदी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

पत्नी पत्नी और वो फिल्म- कमलेश्वर के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है, इस फिल्म को कमलेश्वर ने ही लिखा था। इसमें मुख्य भूमिका संजीव कुमार, विद्या सिन्हा और रंजीता कौर ने निभाई है। ये फिल्म बीआर चोपड़ा ने निर्देशित की है। 2019 में इसका रीमेक रिलीज़ हुआ, जिसमें कार्तिक आर्यन, अनन्या पांडेय और भूमि पेडनेकर ने मुख्य भूमिकाएं निभायीं।

पल्प फिक्शन भी रहा है सिनेमा का हिस्सा

हाल ही में ऑल्ट बालाजी और ज़ी5 पर आयी सीरीज़ बिच्छू का खेल को ओटीटी कंटेंट की दुनिया में पल्प फिक्शन या लुगदी साहित्य की एंट्री माना जा सकता है। हालांकि, लुगदी साहित्य और सिनेमा की जुगलबंदी पहले भी होती रही है।

मशहूर लेखक वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास ‘बहू मांगे इंसाफ़’ पर 1985 में ‘बहू की आवाज़’ फ़िल्म आयी थी, जिसमें नसीरूद्दीन शाह, राकेश रोशन, ओम पुरी और सुप्रिया पाठक जैसे कलाकार थे। हालांकि, अक्षय कुमार की हिट फ़िल्म ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’ पल्प फिक्शन और सिनेमा की जुगलबंदी की सबसे कामयाब मिसाल है। यह वेद प्रकाश शर्मा के लल्लू उपन्यास पर आधारित थी।

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